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रोम रोम रस पीजे : ललितप्रभ
स्मृति-अवशेष जब तक स्मृति शेष है, पूर्ण वियोग असम्भव है।
स्वप्न यदि सपने के लड्डुओं से पेट भर जाता, तो श्रम की जरूरत ही न पड़ती।
स्वभाव चाहे अपराध हो या देवत्व स्वयं के स्वभाव में ही उसका परिदर्शन किया जाना चाहिये।
स्वर्ग-नरक स्वर्ग और नरक जीवन की ही अनुकूल एवं प्रतिकूल परिस्थिति का नाम है। मैत्री का विस्तार स्वर्ग है और वैर की प्रगाढ़ता नरक है।
स्वाद सारी मारा-मारी जीभ की है। गले से नीचे उतरने के बाद तो सब एक हो जाता है।
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