Book Title: Rom Rom Ras Pije
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 87
________________ ७२ ] रोम रोम रस पीजे : ललितप्रभ स्मृति-अवशेष जब तक स्मृति शेष है, पूर्ण वियोग असम्भव है। स्वप्न यदि सपने के लड्डुओं से पेट भर जाता, तो श्रम की जरूरत ही न पड़ती। स्वभाव चाहे अपराध हो या देवत्व स्वयं के स्वभाव में ही उसका परिदर्शन किया जाना चाहिये। स्वर्ग-नरक स्वर्ग और नरक जीवन की ही अनुकूल एवं प्रतिकूल परिस्थिति का नाम है। मैत्री का विस्तार स्वर्ग है और वैर की प्रगाढ़ता नरक है। स्वाद सारी मारा-मारी जीभ की है। गले से नीचे उतरने के बाद तो सब एक हो जाता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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