Book Title: Rom Rom Ras Pije
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 85
________________ ७० ] रोम रोम रस पीजे : ललितप्रभ सामाजिक-विकास सामाजिक-विकास के लिए आवश्यक है, हम एक हों और नेक हों। मैं उस समाज से प्यार करता हूँ, जिसमें एकता का प्रकाश हो और नैतिकता का विकास हो । साम्प्रदायिकता साम्प्रदायिकता मनुष्यता को समाप्त कर उच्चतर मूल्यों को छीनती है। सार्थक सार्थक की प्रतीति होने पर निःसार का ज्ञान सहज हो जाता है। सार्थकता जीवन उसीका सार्थक है, जिसकी एक आवाज के पीछे हजार आवाज हो, एक कदम के पीछे हजार कदम हों। सिद्धान्त-उपयोग सिद्धान्तों का उपयोग केवल तर्क-वितर्क के लिए नहीं, आचरण के लिए होना चाहिये। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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