Book Title: Rom Rom Ras Pije
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 79
________________ ६४ ] रोम रोम रस पीजे : ललितप्रभ सद्गुण-धृति मैत्री, सत्य, मधुरता और संयम की निष्ठा को दृढ़तर और उज्ज्वलतर बनाना जीवन को नरकावास से कोसों दूर रखना है। सद्गुरु वह महापुरुष सद्गुरु है, जिसके सामने सच होना ही पड़ता है। सद्गुरु मानसरोवर पर ही रहते हों, ऐसी बात नहीं है । वे जहाँ रहते है, वहीं मानसरोवर हो जाता है । सद्गृहस्थ साधु वन्दनीय है, पर कुछ गृहस्थ भी ऐसे होते हैं, जिनकी श्रेष्ठता साधुओं से बौनी नहीं होती। सद्भाव भगवान उसी को अपना प्रतिनिधि स्वीकार करेंगे, जिसके अन्तर्मन में शुद्ध और सही भावों की गंगा बहती है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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