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रोम रोम रस पीजे : ललितप्रभ
संवेग
मन के बहाव में अतीत के संवेग सहारा देते हैं । मन को दी जा रही ऊर्जा को अगर रोक दिया जाये, तो यह स्वतः रुक जाएगा ।
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संवेदनशील
पावों तले आने वाले काँटे से ही नहीं, फूल से भी बचो । काँटे का पता तो शराबी को भी हो जाएगा, पर फूल की गड़न संवेदनशील ही समझ सकता है ।
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संसार
संसार ऐसी विचित्र पहेली है, जिसका हल ढूढ़ने जाओगे तो पहेली का हल पहेली से कम नहीं होगा ।
अतीत के खंडहर और भविष्य की कल्पनाएँ — यही संसार है ।
उस संसार को सराय न कहा जाये तो और क्या कहा जाये, जहाँ सिर्फ चलाचली की ही रस्म अदा होती है ।
संस्कारित
जीवन को सभ्य और संस्कारित बनाने के लिए स्वयं को उन नालों से दूर रखना होगा, जो असभ्य प्रवृत्तियों से
भरे हुए हैं ।
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