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________________ रोम रोम रस पीजे : ललितप्रभ संवेग मन के बहाव में अतीत के संवेग सहारा देते हैं । मन को दी जा रही ऊर्जा को अगर रोक दिया जाये, तो यह स्वतः रुक जाएगा । ६२ ] संवेदनशील पावों तले आने वाले काँटे से ही नहीं, फूल से भी बचो । काँटे का पता तो शराबी को भी हो जाएगा, पर फूल की गड़न संवेदनशील ही समझ सकता है । 1 संसार संसार ऐसी विचित्र पहेली है, जिसका हल ढूढ़ने जाओगे तो पहेली का हल पहेली से कम नहीं होगा । अतीत के खंडहर और भविष्य की कल्पनाएँ — यही संसार है । उस संसार को सराय न कहा जाये तो और क्या कहा जाये, जहाँ सिर्फ चलाचली की ही रस्म अदा होती है । संस्कारित जीवन को सभ्य और संस्कारित बनाने के लिए स्वयं को उन नालों से दूर रखना होगा, जो असभ्य प्रवृत्तियों से भरे हुए हैं । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003969
Book TitleRom Rom Ras Pije
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1993
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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