Book Title: Rom Rom Ras Pije
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 75
________________ ६० ] रोम रोम रस पीजे : ललितप्रभ श्रद्धा / प्रज्ञा सजल श्रद्धा और प्रखर- प्रज्ञा अभिनन्दनीय है । श्राद्ध पिंडदान से मत्स्यों का पेट भर जाएगा; सही श्राद्ध तो आत्म-श्रद्धा ही है । संकल्प / समर्पण बहाव के साथ बहना समर्पण है । संकल्प गंगासागर से गंगोत्री की ओर जाना है । संकीर्ण नदी-नालों से तृप्त होने वाली मछली मानसरोवर क्यों चाहेगी ! संगत किसी व्यक्ति का परिचय पाने के लिए इतना जानना ही पर्याप्त होगा कि वह कैसे लोगों के बीच रहता है और जीता है । उस संगत का अभिवादन है, जो सत् के सदाबहार फूल खिलाती है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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