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रोम रोम रस पीजे : ललितप्रभ
श्रद्धा / प्रज्ञा
सजल श्रद्धा और प्रखर- प्रज्ञा अभिनन्दनीय है ।
श्राद्ध
पिंडदान से मत्स्यों का पेट भर जाएगा; सही श्राद्ध तो आत्म-श्रद्धा ही है ।
संकल्प / समर्पण
बहाव के साथ बहना समर्पण है । संकल्प गंगासागर से गंगोत्री की ओर जाना है ।
संकीर्ण
नदी-नालों से तृप्त होने वाली मछली मानसरोवर क्यों चाहेगी !
संगत
किसी व्यक्ति का परिचय पाने के लिए इतना जानना ही पर्याप्त होगा कि वह कैसे लोगों के बीच रहता है और जीता है ।
उस संगत का अभिवादन है, जो सत् के सदाबहार फूल खिलाती है ।
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