Book Title: Rom Rom Ras Pije
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 73
________________ ५८ ] रोम रोम रस पीजे : ललितप्रभ शाश्वतता संसार की शाश्वतता को चुनौती नहीं दी जा सकती । सृजन तो मात्र बहाना है । संसार का अस्तित्व हर प्रलय के बाद निश्चित है | शास्त्र शास्त्र मार्गदर्शक हैं, पर शास्त्रीयता का दुराग्रह बुद्धि का ओछापन है । . शिक्षा शिक्षा तब तक अधूरी कहलाएगी, जब तक आँखों से ननिहारा जायगा । शिक्षा - उद्देश्य 'एम.ए.' की उपाधि प्राप्त करना आजीविका के लिए सहायक है, लेकिन 'एम. ए. एन.' (मैन ) की रचना मानवीय शिक्षा का मूलभूत उद्देश्य है । शिक्षा और आजीविका उन लोगों की आजीविका सदैव प्रारक्षित है, जिन्होंने ज्ञान एवं शिक्षा के क्षेत्र को ईमानदारी से आत्मसात् किया है। जिन लोगों ने ज्ञान की बजाय सिर्फ उत्तीर्णता Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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