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रोम रोम रस पीजे : ललितप्रभ
शाश्वतता
संसार की शाश्वतता को चुनौती नहीं दी जा सकती । सृजन तो मात्र बहाना है । संसार का अस्तित्व हर प्रलय के बाद निश्चित है |
शास्त्र
शास्त्र मार्गदर्शक हैं, पर शास्त्रीयता का दुराग्रह बुद्धि का ओछापन है । .
शिक्षा
शिक्षा तब तक अधूरी कहलाएगी, जब तक आँखों से ननिहारा जायगा ।
शिक्षा - उद्देश्य
'एम.ए.' की उपाधि प्राप्त करना आजीविका के लिए सहायक है, लेकिन 'एम. ए. एन.' (मैन ) की रचना मानवीय शिक्षा का मूलभूत उद्देश्य है ।
शिक्षा और आजीविका
उन लोगों की आजीविका सदैव प्रारक्षित है, जिन्होंने ज्ञान एवं शिक्षा के क्षेत्र को ईमानदारी से आत्मसात् किया है। जिन लोगों ने ज्ञान की बजाय सिर्फ उत्तीर्णता
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