Book Title: Rom Rom Ras Pije
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 82
________________ [ ६७ सर्जन-संहार एक वृक्ष से माचिस की लाखों दियासलाइयाँ बन सकती है, पर लाखों वृक्षों को जलाने के लिए एक दियासलाई ही काफी है । रोम रोम रस पीजे : ललितप्रभ जो स्व का ज्ञाता है, वही सर्वज्ञ है । सर्व-दर्शन स्वयं में सबको देखना और सबमें स्वयं को निहारना मानवता की आत्म-कथा है । सर्वज्ञ सर्वात्मदर्शन परमात्मा की सम्भावना हर मनुष्य में है । स्वयं की तरह दूसरों में भी परमात्मा की सम्भावनाओं को स्वीकार करने वाला जीवन के हर कदम पर परमात्मा की सेवा करता है । प्राणी मात्र में श्रात्मा को स्वीकार करने वाला ही हिंसा की हृदय से उपासना कर सकता है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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