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रोम रोम रस पीजे : ललितप्रम
वर्तमान-जीवी अतीत और भविष्य में जीना माया है, वर्तमान में जीना ब्रह्म-विहार है।
वासना-साधना वासना दूसरे में सुख की प्राशा है और साधना स्वयं में सुख की खोज यात्रा है।
विचार-मुक्ति मस्तिष्क में हर समय विचारों की हेराफेरी मानसिक रुग्णता है। विचारों के जंगल से ठीक वैसे ही पार हो जाओ, जैसे जंगल से रेलगाड़ी।
विजय उस व्यक्ति से विजय कितनी दूर है, जिसे मौत की परवाह नहीं है।
विनाश-विकास आगे बढ़ना तुम्हारा धर्म है, पर किसी को मिटाकर नहीं।
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