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रोम रोम रस पीजे : ललितप्रभ
राखी राखी के धागे दो कौड़ी के होते हैं। अभिनन्दन है उस साधना का, जिस प्रेम के मन्त्र से वे अभिमन्त्रित होते हैं।
राग-द्वेष राग शराब की प्याली है और द्वेष जहर की।
राग और द्वष मन के ही विकल्प हैं, आज जिनसे जुड़े हो, कल उन्हीं से टूट जाते हो।
राग-विराग-वीतराग राग संसार है। विराग संन्यास है और वीतराग मोक्ष है।
राजनीति किसी बुरे कृत्य को और अधिक बुरे कृत्य से विनष्ट करना राजनीति का अंधापन है।
राह गलत राहों पर चलकर सही मंजिल तक नहीं पहुँचा जा सकता।
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