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राम राम रस पीज : ललितप्रभ
वह व्यक्ति मूर्ख है, जो हाथी की तरह नहाकर पुनः अपनी पीठ पर मिट्टी डालता है।
मत्यु
मृत्यु मात्र जीवन के चोले का परिवर्तन है। चोला बदलने से जीवन की ध्र वता नहीं खोती। _मौत का तूफान आत्मा की ज्योति को कभी बुझा नहीं सकता, क्योंकि जो बुझ रहा है और मृत्यु को प्राप्त हो रहा है, वह आत्मा नहीं, देह है ।
मृत्यु जीवन का गहनतम केन्द्र है। उसकी गहनता को वे लोग ही पहचान पाते हैं, जो होश में रहकर स्वागत भरे भाव से मुत्युलोक में प्रवेश करते हैं।
सम्यक् जीवन से निःसृत मृत्यु भी परम उत्सव है। साधक के लिए यही चरमोत्कर्ष है ।
वह मृत्यु भी जीवन है, जो कर्तव्य-पालन के क्षणों म पायी है। ___ पड़ौसी की मृत्यु हमारे लिए जीवन की कसौटी है। दूसरे की मृत्यु पर अाँसू ढुलकाए जाते हैं, पर वास्तव में यह हमें अपनी मृत्यु की पूर्व सूचना है।
मृत्यु-दर्शन
मरते हुओं को सभी देखते हैं, सम्बुद्ध पुरुप तो वह है. जो मृत्यु को देख लेता है ।
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