________________
रोम रोम रस पीजे : ललितप्रभ
[ ४७
मितभाषी कम बोलना मुसीबतों को अोछा करना है।
मुक्ति-मार्ग मुक्ति का मार्ग संसार के प्रति विद्रोह नहीं है, बल्कि संसार के प्रति स्वयं के राग-द्वेष मूलक भावना की कटौती है। संसार के सरोवर में खुद को कमल की तरह निर्लिप्त रखना ही मुक्ति-मार्ग की पृष्ठ-भूमिका है।
मुनि-जीवन मुनि-जीवन पुरुषार्थ-सिद्धि से सर्वार्थ-सिद्धि की सफल यात्रा है।
मुसीबत बड़ी मुसीबत आने पर छोटी मुसीबतें ठीक वैसे ही गौण हो जाती हैं, जैसे हड्डी टूटने पर फोड़े का दर्द ।
मूढ़ता सद्गति का मार्ग जानने के बावजूद उससे विपथ होना मूढ़ता है।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org