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रोम रोम रस पीजे : ललितप्रभ
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मेरापन
'मेरा' अज्ञान का आधार है । 'मेरा' गिरते ही आत्मा प्रगट होती है और 'मैं' के झुक जाने पर परमात्मा ।
मोक्ष
मृत्यु का मरण ही मोक्ष है।
मौन
उपद्रवग्रस्त वातावरण में मौन और शान्ति की उपलब्धि नरक में भी स्वर्ग की अनुभूति है।
मौन होठों का गूगापन नहीं, वह अन्तर-ऊर्जा के सम्पादन की कला है।
योग
मन का अवसान ही योग है।
योजना योजना बन जाने मात्र से यह सोच लेना कि प्राधा काम तो बन गया, वास्तविकता से हटकर मात्र हवा में छलांग लगाना है।
रवानगी
जो रवाना हो गया, वह पहुँचेगा ही।
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