Book Title: Rom Rom Ras Pije
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 59
________________ ४४ ] रोम रोम रस पीजे : ललितप्रभ मनः कर्तृत्व शत्रुता एवं मित्रता के दायरे स्वयं व्यक्ति की ही देन है । किसी व्यक्ति विशेष को सम्बन्ध का आधार मानना मात्र निमित्त है । सम्बन्धों का वास्तविक जाल तो हमारे ही मन की बदौलत है । श्रवरण हो एक मन, मनन हो दस मन । पैदा नहीं तो पात्र कैसे भरेगा । मनन मनोपयोग ध्यान मन का सदुपयोग है, संसार मन का दुरुपयोग है। Jain Education International मनोगत मनोमुक्ति मन की मृत्यु ही योग की अभिव्यक्ति है । वह व्यक्ति धन्य है, जो मन से मुक्त है । मनोसंसार वह संसार क्षण-भंगुर है, जिसकी सृष्टि हमने और हमारे मन ने की है । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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