Book Title: Rom Rom Ras Pije
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 57
________________ ४२ ] रोम रोम रस पीजे : ललितप्रभ भाव-भेद बिल्ली अपने दाँतों से चूहे को भी पकड़ती है और अपने बच्चे को भी । परन्तु एक हत्या है और दूसरा प्रेम । भाव-मिथ्यात्व बगुला मानसरोवर में मीन ही ढूढ़ेगा, मोती नहीं। भाव-विरक्ति बाहर के त्याग तब तक अपनी सार्थकता सम्पादित नहीं कर पाते, जब तक भाव-विरक्ति रोशन न हो। भिक्षु भिक्षु वह है, जो हर आसक्ति और प्रमत्तता का क्षय करने में तन्मय रहता है। भूखा भूखा भगवान को कैसे भजेगा। भूखे का भगवान तो भोजन ही है। भूल भूल यह घाव है, जिससे अगर मवाद निकाल दिया जाये, तो मरहम-पट्टी जल्दी कामयाब हो सकती है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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