Book Title: Rom Rom Ras Pije
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 55
________________ ४० ] रोम रोम रस पीजे : ललितप्रभ बेवकूफ बेवकूफ स्वयं को चाहे जितना समझदार मान ले. पर बेवकूफ से बेवकुफी के सिवाय और कोई उम्मीद नहीं की जा सकती। ब्रह्मचारी गुफा में रहकर ब्रह्मचारी हो जाना उतना कठिन नही है, जितना वेश्यालय में रहकर निष्कल्प रहना । भक्त भक्त वह है, जो बिखरी हई ममता को समेटकर एक चरण में न्यौछावर कर दे। भक्ति भक्ति हो वह साधन है, जो धर्म और अध्यात्म को नीरस होने से बचाती है। भगवद्-स्मरण संकट आने के बाद भगवान को याद करने की सोचना अर्थहीन है। भगवान को तो सदा स्मरण रखना चाहिये, संकट की प्रतीक्षा किये बगैर । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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