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रोम रोम रस पीजे : ललितप्रभ
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भूल होना बुरा नहीं है, किसी भूल का दुबारा होना
बुरा है ।
भूला भटका
उसे
सुबह का भटका अगर सांझ तक भी लौट आये तो दुत्कारना नहीं चाहिये ।
क्रोध मानवीय व्यवहार के लिए मधुर- वार्तालाप अपनी ओर से पेश पुष्पाहार है ।
मध्यम मार्ग
वीणा के रसवन्ती तार इतने निर्मम न कसे जायें कि वे टूट जायें और इतने ढ़ीले भी न छोड़े जायें कि स्वर का संसार ही डूब जाये ।
मधुर- वार्तालाप कलंक है; वहीं किया जाने वाला
मन
मन की विक्षिप्तता पागलपन है और मन की स्वस्थता सम्बोधि की पहल है ।
मन दुष्पुर है, यदि सकता, तो हर भिखारी होता ।
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सफियों से ही वह भरा जा मरते दम तक सम्राट अवश्य
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