SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 58
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रोम रोम रस पीजे : ललितप्रभ [ ४३ भूल होना बुरा नहीं है, किसी भूल का दुबारा होना बुरा है । भूला भटका उसे सुबह का भटका अगर सांझ तक भी लौट आये तो दुत्कारना नहीं चाहिये । क्रोध मानवीय व्यवहार के लिए मधुर- वार्तालाप अपनी ओर से पेश पुष्पाहार है । मध्यम मार्ग वीणा के रसवन्ती तार इतने निर्मम न कसे जायें कि वे टूट जायें और इतने ढ़ीले भी न छोड़े जायें कि स्वर का संसार ही डूब जाये । मधुर- वार्तालाप कलंक है; वहीं किया जाने वाला मन मन की विक्षिप्तता पागलपन है और मन की स्वस्थता सम्बोधि की पहल है । मन दुष्पुर है, यदि सकता, तो हर भिखारी होता । Jain Education International सफियों से ही वह भरा जा मरते दम तक सम्राट अवश्य For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003969
Book TitleRom Rom Ras Pije
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1993
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy