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रोम रोम रस पीजे : ललितप्रभ
मनः कर्तृत्व
शत्रुता एवं मित्रता के दायरे स्वयं व्यक्ति की ही देन है । किसी व्यक्ति विशेष को सम्बन्ध का आधार मानना मात्र निमित्त है । सम्बन्धों का वास्तविक जाल तो हमारे ही मन की बदौलत है ।
श्रवरण हो एक मन, मनन हो दस मन ।
पैदा नहीं तो पात्र कैसे भरेगा ।
मनन
मनोपयोग
ध्यान मन का सदुपयोग है, संसार मन का दुरुपयोग है।
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मनोगत
मनोमुक्ति
मन की मृत्यु ही योग की अभिव्यक्ति है । वह व्यक्ति धन्य है, जो मन से मुक्त है ।
मनोसंसार
वह संसार क्षण-भंगुर है, जिसकी सृष्टि हमने और हमारे मन ने की है ।
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