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रोम रोम रम पीजे : ललितप्रभ
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भलाई खुदा सत्र करने वालों का माथ निभाता है. जब करने वालों का नहीं।
भविष्य भविष्य के सुनहरे स्वान देखकर वर्तमान को नरक नाहना भविष्य को दरिद्र बनाना है।
भाई-बहिन यदि दुनियाँ में भाई और बहिन का सम्बन्ध न होता, तो शायद पवित्रता अपना मुह दिखाने लायक भी न होती।
भाग्य कम समय में अधिक सफलता पुरुषार्थ पर भाग्य की कृपा है।
भाव भाव यदि लचीले हों, तो शब्दों की कठोरता भी अानन्ददायिनी माँ होती है।
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