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रोम रोम रस पीजे : ललितप्रभ
ध्यान भीतर की अलमस्ती है, अन्तर आँखों का उन्माद है और जीवन के द्वार पर प्रतिक्रमण है ।
ध्यान-समाधि
चित्त का प्रक्षुब्ध न होना ही ध्यान है और उसका प्रसन्नता से भरपूर हो जाना समाधि है ।
नम्रता
नम्रता जीवन की वह अनिवार्यता है, जो घड़े को पानी से सराबोर करती है ।
नवकर्म
किये हुए को ही करते रहना लीक पर चलना है । कुछ नया होने- बनने के लिए नये मार्ग का निर्माण अपरिहार्य है ।
नियति
नियति की रेखाओं को मिटाने के लिए उठने वाली गुली ही मिटती है, फिर चाहे वह अंगुली चक्रधर की भी क्यों न हो ।
जिसने नवजात के पेट में भूख रखी, उसी ने माता के स्तन में दूध रखा ।
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