Book Title: Rom Rom Ras Pije
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 49
________________ रोम रोम रस पीजे : ललितप्रभ नेकी/बदी नेकी करें, बदी से टलें — अगर जीवन को प्रेम के ३४ ] फूलों से भरना हो । पड़ौसी से पुत्र जैसा ही प्यार करें । परानन्दा किसी दूसरे की ओर अंगुली उठाने से पहले जरा ये देखो, शेष तीन अंगुलियां किधर हैं । पडौसी परमात्म-खोज मात्र पढ़-सुनकर की जाने वाली परमात्मा की खोज अधूरी है । खोज हृदय से पूरी होती है, बुद्धि के पांडित्य से नहीं । परमात्म-प्रेम परमात्मा उसी का है, जिसके हृदय में परमात्मा के लिए प्रेम है । परमात्म-भूमिका शरीर परमात्मा का मन्दिर है और आत्मा की विशुद्धता परमात्मा की पूर्व - भूमिका है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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