Book Title: Rom Rom Ras Pije
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 50
________________ रोम रोम रस पीजे : ललितप्रभ [ ३५ परमात्म-स्मरण परमात्मा का स्मरण इसलिए, ताकि संकट और संघर्ष में व्यक्ति के कदम नैतिकता से कभी स्खलित न हो। वह व्यक्ति परमात्म-अनुभूति कैसे कर पाएगा जो दुःख में उसे याद करता है और सुख में भूल जाता है। सुख में परमात्मा को वही पुकार सकता है, जिसने सुख की व्यर्थता भी जान ली है। परमात्मा आत्मा की विशुद्ध अवस्था ही परमात्मा है । __ परम्परा वह परम्परा किस काम की, जो धर्म को लंगड़ा कर दे। परिवर्तन कपड़ों को रंगाने से क्या हुआ, जब मन ही न रंगा हो! पात्रता बिना पात्रता के परिणाम कैसा ? आखिर ज्वर-ग्रस्त को मीठा रस भी फीका ही लगेगा। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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