Book Title: Rom Rom Ras Pije
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 52
________________ रोम रोम रस पीजे : ललितप्रेभं ।। ३७ पूर्व-जागृति कांटों से क्षत-विक्षत हाकर घाव भरने से तो अच्छा यही है कि अपने आपको कांटों के पास ही न ले जाएं। पैसा पैसा बहुत कुछ कर सकता है, पर सब कुछ नहीं। प्यास पानी का मूल्य उतना ही अधिक होगा, जितनी तीव्र प्यास होगी। प्यासे नयन वे अंखियाँ ही प्यासी हैं, जिनसे नीर अविरल बहता है। प्रतिक्रिया क्रियाएं बन्धनों का कारण नहीं बनती, बन्धनों की बुनियाद तो प्रतिक्रियाएं हैं। प्रतिस्पर्धा .. प्रात्म-विजय प्रतिस्पर्धा में पायी जाने वाली विजय से बेहतर है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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