Book Title: Rom Rom Ras Pije
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 28
________________ रोम रोम रस पीजे : ललितप्रभ [ १३ आत्म-विश्वास आने वाला कल उसकी मुट्ठी है, जो कुछ कर गुजरने के आत्म-विश्वास से लबालब भरा है । आदर्श आदर्शों के निर्वाह का मूल्य समय के मूल्य से कहीं ज्यादा है । प्रान्तरिक मूल्य हमें उन सिद्धान्तों का अमल करना चाहिये, जिनसे आन्तरिक मूल्यों की रक्षा की जा सके । आलोचना आलोचना से मुक्त होने के लिए दूसरों की तो क्या अपनी भी आलोचना नहीं करनी चाहिये । आशा आशा वह डोर है, जिसके सहारे मनुष्य जीता है । जो दूसरों से आशा रखते हैं, वे अपने पैरों में पराधीनता की बेड़िया डाल रहे हैं । निराशाओं की रद्दी संजोए रखने से आशा के रत्न हाथ नहीं लगते । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98