Book Title: Rom Rom Ras Pije
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 42
________________ रोम रोम रस पीजे : ललितप्रभ [ २७ विजय अहंकार और पराजय, वैर एवं उत्तेजना को प्रोत्साहित करती है। दोनों परिस्थितियों में स्वयं को तटस्थ रखना आत्म-शांति के लिए पहल करना है। तन-मन-सम्बन्ध शरीर में पैदा होने वाली उत्तेजना मन को प्रभावित किये बिना नहीं रह सकती। शराब भले ही शरीर पिये, पर अनर्गलता और मदहोशी तो मन पर भी छाती है। तनाव-ग्रस्त तनाव से मुक्ति और शान्ति की प्राप्ति न केवल हमारा लक्ष्य है, जीवन की जरूरत भी है। तनाव-मुक्ति उत्पन्न तनाव से तत्काल मुक्त होने का प्रयास न किया, तो वह तनाव ही तुम्हारे लिए फांसी का फंदा बन बैठेगा। तनाव से मुक्त होने के लिए हमें सबसे पहले उस बिन्दु को ढूढ़ना होगा, जहाँ से इसका लावा फूटकर निकलता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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