Book Title: Rom Rom Ras Pije
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 33
________________ १८ ] रोम रोम रस पीजे : ललितप्रभ कर्मयोग कर्मयोग मानव-विकास का आधार है। जहाँ हैं, उससे दो कदम आगे बढ़ना ही कर्मयोग है। परिणाम की परवाह न कर । कर्म को ढीला न कर । सफलता की आशा के साथ कर्मयोग में जुटा रह, पता नहीं इस संसार में तुम्हारे लिए कब सौभाग्य का सूर्योदय हो जाये। कर्मानुवृत्ति आज एक अच्छा काम किया, तो कल फिर उसे दोहराने का संकल्प करें। किताब किताबें मनुष्य को पण्डित बना सकती हैं, किन्तु यह जरूरी नहीं है कि पण्डित चारित्रशील हो। कृतघ्नता ___ इंसान की यही कृतघ्नता है कि वह स्वयं को उस कंधे से भी ऊँचा समझने लगता है, जिस पर वह टिका है । केन्द्रीकरण संसार की चलती हुई चक्की में अखण्ड वही रहता है, जिसने अपने-आपको आत्मकील पर केन्द्रित कर रखा है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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