Book Title: Rom Rom Ras Pije
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 32
________________ रोम रोम रस पीजे : ललितप्रभ [ १७ कथनी-करनी जो कहना है, पहले उसे कर लें। बिना आचरण में आए दिया जाने वाला उपदेश थोथे चने की आवाज है। करनी इंसान खुद ही केले के छिलके गेरता है, फिर उन्हीं पर फिसलकर रोता है। कर्तव्य-पथ कर्तव्य-पथ पर अपने पाँव बढ़ाना ही कृतयुग का द्वारोद्घाटन है। कर्म-गणित पुण्य पाप से बेहतर है, पर कर्म की रेखा तो पाप की तरह पुण्य भी है। पुण्यात्मा होना अच्छी बात है, पर कर्म-मुक्त शुद्धात्मा होना जीवन की भव्यता है। कर्मफल यदि कर्म तुम्हारा अधिकार है, तो फल की कामना अनधिकार नहीं है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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