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रोम रोम रस पीजे : ललितप्रभ
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ईमानदार ईमानदार इंसान सृष्टि की श्रेष्ठ रचना है। वह वैभव का मुंह नहीं ताकता। परिश्रम ही उसके सौभाग्य का विश्वास है।
ईश-नाम राम-रहीम और महावीर-महादेव के नामधारी झगड़ों में न पड़कर व्यक्ति को परमात्म तत्त्व की उपासना क जानी चाहिये
ईर्ष्या ___ ईर्ष्या करनी हो तो किसी महापुरुष के बराबर होने की करनी चाहिये
उपकार कृतज्ञ बनाने की भावना से किसी पर उपकार करना, उसकी स्वतन्त्रता के साथ तो छल है ही, स्वयं के लिए भी अपकार है।
उपलब्धि उपलब्धि पूर्ण परिश्रम चाहती है, कम मूल्य पर इसे खरीदा नहीं जा सकता।
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