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रोम रोम रस पीजे : ललितप्रभ
अाँसू भाषा और शब्द की सीमाएं हैं और आँसू अगाधभावों की अभिव्यक्ति हैं। जहाँ अभिव्यक्ति की सारी विधाएं गूगी हो जाती हैं, वहाँ अाँसू ही अभिव्यक्ति के सशक्त साधन बनते हैं।
आँसू आँखों का कोरा पानी नहीं है, हृदय के उद्गार हैं। यह निर्भार होने का मार्ग है। अाँसुओं को दबाना तो भावों की हिंसा है। गम की ताजपोशगी है।
जहाँ शब्द बौने हो जाते हैं, वहाँ आँसू अभिव्यक्ति के प्रबल दावेदार हो जाते हैं ।
आईना आईना स्वयं के बोध के लिए नहीं, शरीर के शृंगार के लिए है।
प्राकार कीमत अमृत की है, प्याले के रूप की नहीं।
आचार-विचार-भेद चिन्तन क्षमा का और आचरण क्रोध का--यह जीवन का बांझपन है।
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