Book Title: Rom Rom Ras Pije
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 23
________________ =] रोम रोम रस पीजे : ललितप्रभ असम्बद्धता जब तुम मन से असम्बद्ध हो, तब तुम बस तुम हो । यही तुम्हारा विशुद्धत्तम अस्तित्व है । असलियत स्वयं की वस्तुस्थिति का मूल्यांकन ही आत्म-समीक्षा है । वह व्यक्ति भिखारी होते हुए भी तहेदिल से सम्राट है, जिसने अपनी असलियत का स्वागत किया है। अस्पृश्यता हर चेतना में परमात्मा की आभा है। किसी को अस्पृश्य कहना उस ग्राभा का अपमान है । किसी इन्सान को छूकर स्नान करना कुत्सित हृदय की अभिव्यक्ति है । खुद को कुछ मानना ही अहंकार की पुष्टि है । Jain Education International अहंकार ग्रहं नमन अहंकार का मस्तिष्क भुकाने के लिए परमात्मा की उपासना करनी चाहिये । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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