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पहला उच्छ्वास
प्राचीन काल में पुरिमताल नामक नगर था। वह प्राकृतिक सौन्दर्य से शोभित और अनेक उद्यानों तथा पर्वतों से परिमंडित था। वहां शूरसेन नाम का राजा राज्य करता था। वह राजनीति और धर्म-नीति में अत्यन्त निपुण, चोर, लंपट और लुटेरों के लिए क्रूर होते हुए भी अत्यधिक सौम्य था। उस उद्यमी राजा ने अपने भुजबल से शत्रुओं को भयभीत कर दिया था।
वहां अनेक इभ्य, श्रेष्ठी तथा गाथापति रहते थे। वे बहुत धनाढ्य, मान और मात्सर्य से रहित थे। वे मितव्ययी थे, किन्तु उनका धन अच्छे कामों में नदी के स्रोत की तरह बहता था। उनकी लज्जालुदृष्टि परस्त्रियों को माता की दृष्टि से देखती थी। वे तत्त्वज्ञ थे। कभी अपराध हो जाने पर तत्काल प्रायश्चित्त स्वीकार करने के लिए उद्यत रहते थे। कल या परसों करने वाला शुभ कार्य हम अभी करलें इस प्रकार वे विशेष जागृत रहते थे। प्रायः वहाँ के धनाढय व्यक्ति भी दूसरों के दुःख में स्वयं दुःखित होते थे। वे क्षमाशील होते हुए भी धार्मिक पराभव को कभी सहन नहीं करते थे। दूसरे-दूसरे कार्यों का भार आ जाने पर भी वे धर्म-कार्य को प्रधान मानते थे। अहो आश्चर्य ! मनुष्य जन्म की उनकी सफलता देखकर देव भी वैसा बनने के लिए स्पर्धा करते रहते थे।
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