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दूसरा उच्छ्वास
प्राय: मनुष्य गतानुगतिक होते हैं । जो मुखिया लोग हैं जिनका नाम विख्यात है, वे प्रतिकूल भाग्य और सर्वाङ्गीण विपत्ति के समय में भी उस
आडम्बर युक्त कार्य (रूढ़ि) को छोड़ना नहीं चाहते जो कि अनुकूल समय में निर्वहनीय, परंपरा से प्रतिष्ठित और क्षणिक गौरव को बढ़ाने वाला है। वे लोग ‘कल क्या होगा' - इसका विमर्श नहीं करते। उनकी गर्वीली आँखें भविष्य में होने वाले परिणाम को नहीं देख पातीं।
जिनदत्त ने भी अपने पिता-पितामह के गौरव को बढ़ाने वाले सप्तमासिक गर्भ महोत्सव को संपन्न किया। उसने अपने स्वजनों को विविध प्रकार के अशन, पान, खादिम और स्वादिम पदार्थ खिलाए। अपने पूर्वपूज्यों को यथोचित सम्मान देकर उनका आदर किया। मंगल पाठक और कुल-गुरुओं को अपने कुलानुरूप दान देकर संतुष्ट किया।
गर्भ का समय बीता। भानुमती ने सुख-पूर्वक पुत्र का प्रसव किया। सर्व लक्षण युक्त पुत्ररत्न पैदा हुआ। अहो ! उसका सूना घर गृहमणि से शोभित हुआ। स्वजनों के मन में अपूर्व उत्सव जगा । सेठ ने पुत्र रूप में वंशसूर्य को प्राप्त कर अपने को धन्य माना। धर्म-रूपी कल्पवृक्ष दानादि जल से सिंचित होकर फलित और पुष्पित हुआ। भानुमती अपने बालक के
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