Book Title: Rayanwal Kaha
Author(s): Chandanmuni, Gulabchandmuni, Dulahrajmuni,
Publisher: Bhagwatprasad Ranchoddas

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Page 344
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रयणवाल कहा मिट जाए तो आरोग्य संपत् स्वतः प्राप्त हो जाती है। इतना कहकर राउल ने राजा की धमनी का निरीक्षण किया और रोग का निदान कर लिया। कुछ सोचकर उसने कहा---'सही निदान करने वाले वैद्य के लिए रोग को शांत करने में गौशीर्ष चन्दन की आवश्यकता है, यदि वह प्राप्त हो जाय तो रोग तत्काल शान्त हो सकता है।' शीघ्र ही राजा के नौकर चन्दन की खोज करने नगर में गए और चन्दन के सभी व्यापारियों से पूछा, किन्तु गोशीर्ष चन्दन का एक भी टुकड़ा नहीं मिला। सभी गवेषक उदास होकर लौट आए। उहोंने कहा-'यहां कोई भी व्यक्ति गोशीर्ष चन्दन को न जानता है, न पहचानता है और न उसे रखता है। यदि कोई दूसरे सामान्य जाति के चन्दन की आवश्यकता हो तो यहां सुलभ है।' नृप हताश हो गया। उसने कहा---'अरे ! यहाँ गोशीर्ष चन्दन नहीं मिला? हा! हा! भावी की रेखा अनुल्लंघनीय होती है। योगीश्वर ! अब आप ही मेरे पारणदाता हैं। योगी ने कहा - 'महाराज ! ईश्वर के साम्राज्य में ऐसी कौन-सी वस्तु है जो न मिले ? मनुष्य की अयोग्यता ही मनुष्य की असफलता है। क्या नगर में गोशीर्ष चन्दन नहीं मिलता ? आज ही मिलता है, अभी मिलता है, यहीं मिलता है'-ऐसे कहते हुए-उसने तत्काल अपना हाथ झोले में डाला और दोनों आँखें मूद कर जोर से बोला- 'गोशीर्ष चन्दन जल्दी भाओ, गोशीर्ष चन्दन जल्दी आओ। प्रभु की आज्ञा है, गुरु की आज्ञा है, योगी राउल की आज्ञा है । गोशीर्ष चन्दन जल्दी आओ।' इतना कहकर उसने गोशीर्ष चन्दन के टुकड़े सहित अपना हाथ झोली से निकाला। राजा आदि सभी चकित रह गए। ओह ! योगी की शक्ति अचिन्तनीय है । अकस्मात् झोलिका में यह गोशीर्ष चंदन कहां से आया ? निश्चित ही मेरा यह दाधज्वर शोघ्र ही नष्ट हो जाएगा।' राउल ने अपने हाथ से चन्दन घिसा और कुछ मंत्राक्षरों का उच्चारण करते हुए उसने राजा के शरीर पर उसका लेप किया। लेप होते ही सारे शरीर में अनुपम शीतलता छा गई। दाघज्वर नष्ट हो गया। राजा स्वस्थ हुआ। उसने नया जीवन पाया। राजा राउल के चरणों में गिर पड़ा और कृतज्ञतापूर्वक बोला-अहो ! निष्कारण उपकारो ऐसे होते हैं ! मुनियों में आज भी वर्णनातीत शक्ति विद्यमान है। इसीलिए लोग उनकी सभक्ति पूजा करते हैं और लोग उनका सत्कार तथा सम्मान करते हैं। निस्पृह ! किस प्रत्यूपकार के द्वारा में अपने आपको हल्का करू ? यह सत्य है कि लोकोत्तर चरित्र वाले व्यक्तियों को इस लोक में कुछ भी नहीं चाहिए तथापि आप For Private And Personal Use Only

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