Book Title: Rayanwal Kaha
Author(s): Chandanmuni, Gulabchandmuni, Dulahrajmuni,
Publisher: Bhagwatprasad Ranchoddas

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Page 350
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रयणवाल कहा उन्होंने सोचा-'यह राउल कैसा महानुभाव है कि निष्कारण ही हम पर उपकार कर रहा है । यह गुरुजनों की तरह हमारी सेवा कैसे कर रहा है ? अथवा मनस्वी व्यक्तियों का यह प्रकृति सिद्ध स्वभाव है । आश्चर्य है नीर क्यों पिपासा शांत करता है ? अन्न क्यों भूख शांत करता है ? सूर्य क्यों प्रकाश फैलाता है ? चन्द्रमा क्यों शीतलता प्रदान करता है ? अर्थात् यह उनका प्रकृति-जन्य स्वभाव है ।' उन्होंने राउल को गाड़ी पर चढ़ने का बहुत अनुरोध किया। तो भी वह गाड़ी पर नहीं बैठा । वह भिक्षाचर्या से स्वयं भोजन लाता अपने हाथ से पकाता और दोनों को पहले भोजन कराकर फिर स्वयं एकबार भोजन करता। इस प्रकार सुखपूर्वक रास्ता कटता गया और वे पुरिमताल की ओर शीघ्र गति से बढ़ने लगे । अहो ! कैसा पौरुष है ! For Private And Personal Use Only

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