Book Title: Rayanwal Kaha
Author(s): Chandanmuni, Gulabchandmuni, Dulahrajmuni,
Publisher: Bhagwatprasad Ranchoddas

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Page 351
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सातवां उच्छ्वास रत्नपाल ने सोचा-'प्राय: छह महीने बीत चुके हैं। आज तक राउल क्यों नहीं आया ? क्या मेरे माता-पिता नहीं मिले ? क्या जाते-जाते वह कहीं रास्ते में भटक तो नहीं गया ? क्या वह किसी नगर की जनता की अत्यन्त भक्ति से मोहित होकर वहीं ठहर गया ? या वह कहीं प्राकृतिक शोभा से संपन्न किसी पहाड़ की गुफा में ध्यान करने लग गया ? हां ! जानते हुए भी मैंने भूल कर डाली । मैंने अजान राउल को देशान्तर क्यों भेज दिया ? नहीं, नहीं, वह अत्यन्त कार्य-कुशल, इंगित और आकार को जानने वाला समयज्ञ, उद्यमी, उत्साही, सत्यप्रतिज्ञ, योगी और महात्मा है। इसलिए मैं दक्षिणपथ की ओर जाऊं और आने वाले पथिकों की प्रतीक्षा करू । संभव है कि उनसे राउल के समाचार प्राप्त हो जाए।' ऐसा चिन्तन कर रत्नपाल अत्यन्त उत्सुकता से प्रतिदिन दक्षिण दिशा की ओर जाने लगा। वह राउल के मिलने की आशा से दूर से आने वाले पथिकों को देखता, प्रतीक्षा करता, और निरीक्षण करता। वह उस दिशा से आने वाले पथिकों को रोक-रोककर राउल की वेशभूषा, आकृति और वचन माधुर्य का वर्णन कर पूछता कि क्या किसी ने इस प्रकार के बालयोगी को देखा है ? वह उनसे ७७ For Private And Personal Use Only

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