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छठा उच्छ्वास
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जिनदत्त ने तत्काल ही उत्तर देते हुए कहा-'जिस दिन से तुम्हारे मुख से पुत्र का मंगल संवाद सुना है, उसी दिन से पुत्र को देखने की प्रबल उत्कण्ठा उत्पन्न हो गई है । और उसके बिना कहीं भी चैन नहीं पड़ता रहा है । हम प्रतिपल तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहे हैं, तुम्हारे साथ जाने के लिए हमने सारा सामान बांध रखा है, और सभी कार्य सम्पन्न कर लिए हैं।'
राउल ने कहा---'शीघ्रता करें। विरक्त चित्तवाले योगी किसकी प्रतीक्षा करते हैं ? मैं तो अभी जा रहा हूँ--यह कहकर राउल ने अपने पैर आगे बढ़ाए।
सेठ जिनदत्त ने अपने कन्धों पर भार उठाया। नमस्कार मंत्र स्मरण किया और राउल के पीछे-पोछे चलने लगा। भानुमती सेठ के पीछे चलने लगी। सभी शीघ्र ही गाड़ियों के पास आ गए। और शकट संचालित किये ।
राउल ने सहज भाव से कहा— 'सेठ ! आप यह व्यर्थ ही इतना भार क्यों ढो रहे हैं ? आप बूढ़े हैं। गाडियो में इस भार की क्या गणना है ? आप निःशंक रूप से यह भार गाड़ी में रखदें ।'
सरलमति सेठ ने कहा-'राउल ! यह भार दुर्वह नहीं है। यह मैं सुखपूर्वक ढो सकता हूँ।'
तो भी शकट का संयोग होने पर भार को ढोते जाना अच्छा नहीं है' --यह कहते हुए राउल ने सेठ के कंधों पर से अपने हाथ से भार की पोटली उतारी और गाड़ी में सुरक्षित रख दी।
भानुमती के हाथ में भी कोई हल्की वस्तु थी। आग्रह होने पर उसने भी उसको गाड़ी में रख दिया ।' थोड़ी दूर जाने पर राउल ने पुन: कहा- 'एक गाड़ी में खाली स्थान है । आप उसमें क्यों नहीं बैठ जाते ? बूढ़े व्यक्तियों के लिए पद यात्रा सुशक्य नहीं है, इसलिए कृपाकर आप बैठे।'
सेठ ने आभार प्रदर्शित करते हुए कहा-'योगीन्द्र ! आपकी सेवा से हम लज्जित हो रहे हैं । हम जैसे गृहस्थों का यह कर्तव्य है कि वे साधुओं की सेवा करें । वहां प्रत्युत हम आपकी सेवा ले रहे हैं । यह उचित नहीं है । इस लिए हम गाड़ी में नहीं बैठेगे।
सबसे पहला कार्य यह है कि आप जैसे वृद्ध व्यक्तियों की सेवा की जाए। हम जैसे बालकों की नहीं । आपको गाड़ी में बैठना ही पड़ेगा। नही, नहीं करते हुए भी राउल ने उनको पूर्ण आग्रह से छायायुक्त गाड़ी में बिठा दिया ।
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