Book Title: Rayanwal Kaha
Author(s): Chandanmuni, Gulabchandmuni, Dulahrajmuni,
Publisher: Bhagwatprasad Ranchoddas

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Page 360
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir काव्यकर्ता को प्रशस्ति (१) इस (रत्नपाल की कथा) चरित्र को सुनकर जगत को विचित्रता, लक्ष्मी की चंचलता एवं बंधुजनों के स्वार्थपरक प्रेम को समझना चाहिए। (२) इससे भव्यजनों की भावना धर्म प्रवृत्ति में सुस्थिर होती है । धर्म से ही सब सुखों की सुन्दर प्राप्ति होती है । (३) अधिक क्या, अध्यात्म-सुख का एकमात्र कारण, तीन लोक में सारभूत धर्म ही है, भव्यों को धर्म की रादा आराधना करनी चाहिए। (४) वर्तमान कलिकाल में समुद्र के समान धीर-गंभीर अखण्ड उज्ज्वल ___आचार से युक्त तेरापंथ के प्रथम आचार्य श्री भिक्षस्वामी हुए। (५) भिक्ष स्वामी ने संसार और मोक्ष का पृथक्-पृथक् मार्ग बताया। दोनों कभी भी एक नहीं हो सकते । (६) राग पाप का कारण है और जीव दया (अहिंसा) धर्म का मूल है । फिर वे दोनों साथ (एकत्र मिश्र) कैसे हो सकते हैं ? (७) श्रीभिक्षु स्वामी ने अनेक प्रकार के भयंकर कष्टों को सहन कर धर्म की जागृति की । उस दृढ मनस्वी ने संकटों से घबराकर अपना सत्य मार्ग नहीं छोड़ा। (८) उनके द्वितीय पट्टधर धीर श्री भारमलजी स्वामी, तृतीय रायचन्द्र जी एवं चतुर्थ श्री जयाचार्य हुए। (९) विमल हृदय श्री मघवा गणी पांचवे पट्ट पर, श्री माणकचन्द्रजी महाराज छठे एवं श्री डालचन्द्र जी महाराज सातवें पट्ट पर सुशोभित हुए। (१०) मोक्ष मार्ग के पथिक महान् कृपापरायण श्री कालुगणी आठवें पट्ट पर हुए। जिनके शासन में भिक्षुगण की अतुल वृद्धिसमृद्धि हुई। For Private And Personal Use Only

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