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छठा उच्छ्वास
मेरे पर कृपाकर कुछ ग्रहण करें। क्योंकि वास्तव में महान व्यक्तियों को दिया गया दान, खेतों में बीज की भांति, शत-सहस्र गुणित-फलित होता है । मुनियों को दान देने वाले दाता स्वयं अनुगृहीत होते हैं। इसलिए आप करुणा कर कुछ लेने की कृपा करें।
राजा के विनय पर ध्यान न देते हुए राउल ने उपदेश की भाषा में कहा-'राजन् ! मुनियों को क्या चाहिए ? जिनकी निराशा ही आशा है और अकिंचनता ही धन है। अहो ! याचनाशील योगी भी जगत् में क्या मांगे ? उसे अन्न और पानी भिक्षा से प्राप्त हो जाते हैं। उनका शयन स्थान भूमि है । उनका मकान वृक्ष का मूल है । उनके परिजन सारे मनुष्य हैं । उपवास उनके चिकित्सक हैं। राजन् ! थोड़े से त्याग से भी बहुत प्राप्त होता है। योगी आशा रूपी एक जाल को तोड़कर तीन लोकों की समद्धि को पा लेता है। क्या यह अतिलाभ का व्यापार नहीं है ? तो भी तुम्हारी भक्ति पूर्ण प्रार्थना को अपने खजाने में जमा रखता हूं। जब आवश्यकता होगी तब तुमसे कुछ माँगूगा।" इतना कहकर राउल वहां से उठ खड़ा हुआ । राउल की निस्पृह वृत्ति को देखकर सभी विस्मित हुए। सारे नगर में यह आश्चर्य चर्चा फैल गई कि-'राउल विचित्र शक्तियों से संपन्न है।' इसने क्षण भर में राजा की तीव्र वेदना को नष्ट कर दिया। अब राउल का माहात्म्य सर्व विदित हो गया। ____ एकबार संध्या की बेला में अकेला राउल धनदत्त के घर के सामने आया
और धीरे-धीरे वीणा बजाने लगा। संध्या की बेला में वीणा की ध्वनि सुन कर आंखों के आगे राउल को खड़े देखकर धनदत्त जी भार्या भयभीत होगई। वह कांपती हुई तत्काल बाहर आई और राउल से बोली- 'राउल ! तुम यहां विकाल बेला में क्यों आए ? जो चाहे वह ले लो और यहां से आगे अन्यत्र चले जाओ। तुम राजा के द्वारा सम्मानित और पूजित हो । मैं अबला स्त्री अभी अकेली हूँ। तुम्हारा यहां ठहरना बिल्कुल उचित नहीं है। जब इस बालक के पिता घर पर आएं तब तुम यहाँ पुन: लौट आना। तब तुम्हारी उचित सेवा भक्ति हो सकेगी।'
अपने कार्य में दक्ष राउल ने गंभीर होकर कहा–बहिन ! अकेली स्त्री के घर पर आने का मेरा परम धर्म नहीं है, किन्तु भविष्य में होने वाले अशुभ की आशंका से तथा परोपकार-बुद्धि से मैंने यहां आने का साहस किया है । ओह ! बहुत अनिष्ट होने वाला है ।
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