Book Title: Rayanwal Kaha
Author(s): Chandanmuni, Gulabchandmuni, Dulahrajmuni,
Publisher: Bhagwatprasad Ranchoddas

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Page 346
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ७२ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रयणवाल कहा राउल के आकुल वचन सुनकर धनदत्त की पत्नी बहुत कांपने लगी । 'क्या - क्या' - ऐसे धीरे बोलती हुई राउल के पास आई और उसके मुंह के पास अपने कान लेजाकर बात जानने के लिए अत्यन्त आतुर हो गई । "यह सभी जानते ही हैं कि राजा का शरीर दाहज्वर से पीड़ित था । उसने गोशीर्ष चन्दन को पाने के लिए बहुत खोज कराई। किन्तु उसका एक टुकड़ा भी नहीं मिला। देख मैंने उस क्षति की पूर्ति की है। नृप स्वस्थ हुआ । उस समय में एक चुगलखोर ने राजा को यह सूचना दी कि - स्वामिन् ! धनदत्त सेठ के पास गोशीर्ष चन्दन प्रचुर मात्रा में है । तो भी उस लोभी सेठ ने राजा के प्रयोजन के लिये भी चन्दन का एक टुकड़ा नहीं I यह सुनकर राजा कल में वह सारा धन प्राप्त हुआ है दिया | वह कितना स्वार्थ और परमार्थ से विकल है ।' अत्यन्त क्रुद्ध हो गया । मैं संभावना करता हूँ कि आज चन्दन ले लेगा और इससे पूर्व चन्दन के विक्रय से जो उसे भी ले लेगा। यही नहीं, दंड रूप में वह और अधिक क्या अहित करेगा - यह विचारणीय रहस्य है । खेद ! खेद ! उस चुगलखोर ने सारा काम खराब कर डाला' -- यही बात आप लोगों को कहने के लिए आज मैं यहां आया हूँ । अब क्या करना है-इसका थोड़ा विचार करना चाहिए । इतना कहकर राउल वहां से चला गया। इस प्रकार राउल के कथन से भयत्रस्त होकर वह किंकर्त्तव्यमूढ, पागल की तरह बेचैन होकर सोचने लगी - 'हा ! यह क्या हो गया ? कुपित राजा क्या अनर्थ कर डालेगा ? अरे ! अरे ! हमारे घर गोशीर्ष चन्दन की प्रचुर मात्रा है । मेरे लोभी पति ने राजा के प्रयोजन के लिए भी उसे क्यों नहीं दिया ? अब क्या होगा ? वह क्षणभर के लिए भी घर में रहने के लिए समर्थ न थी । वह दौड़ती हुई, बिखरे हुए कपड़ों और आभूषणों सहित एकाकी बाजार में अपने पति धनदत्त के पास आई | असमय में आई हुई उदासीन पत्नी को देखकर धूर्त धनदत्त को खेद और विस्मय हुआ । उसने सोचा- 'ओह ! घर की देहली का भी उल्लंघन न करने वाली यह बाजार में अकेली कैसे आ गई ? निश्चित ही कुछ अनिष्ट जान पड़ता है, अन्यथा यह ऐसे क्यों आती ? इस प्रकार सोचते हुए पति धनदत्त ने पूछा -- प्रिये ! तू यहाँ स्वयं कैसे आगई ? तेरे सामने अनेक नौकर चाकर हैं । आज उनको तूने मेरे पास क्यों नहीं भेजा ? तेरा मुख-कमल हिम से प्रताड़ित मृणाल की भांति क्यों विवर्ण हो रहा है । क्या तूने कोई अनिष्ट वृत्तान्त सुना है ? For Private And Personal Use Only

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