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पांचवाँ उच्छ्वास
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के चित्त को निपुणता से अपने अनुकूल करना । अपने पति का कठोर और सरोष शब्द भी समय पर धैर्य से सहन करना । अन्यथा चिड़चिड़े स्वभाव वाले व्यक्तियों का गृहस्थाश्रम नहीं चल सकता । पुत्री ! तू दूसरों के मन को तब ही जीत सकेगी, जबकि तू अपने मन पर विजय पा लेगी। वस्त्र अलंकार युक्त रूप और लावण्य का दीखने वाला आकर्षण तो एकबार
और क्षणिक होता है। परन्तु मधुर व्यवहार का प्रभाव अटल और नित्य परिवद्धित होता रहता है और सबको वह समान रूप से आकृष्ट करता है । बेटो ! यह जीवन संग्राम है । यहाँ अनेक अनुकूल और प्रतिकूल उपक्रम होते रहते हैं । उसमें शुभ भावनाओं से भावित और रोचित धार्मिक भावना ही सामयिक शांति देने में क्षम है। इसलिए दुःखी व्यक्ति की तरह सुखी व्यक्ति को भी धर्म की आराधना करनी चाहिए । धर्म से सिक्त समता की लता विकसित होती है और वह नित्य कल्याणकारी फल देती है। इसलिए धार्मिक व्यक्ति सदा सुखी रहता है। इस प्रकार भनेक सुवचनों से रत्नवती को बहुत शिक्षा देती हुई उसे अपने अनुभवों से बोधित किया और छाती से चिपका लिया स्वयं रोती हुई, दूसरों को रुलाती हुई रत्नवती प्रस्थान के लिए तत्पर हो गई। इधर जामाता रत्नपाल सज-धजकर श्वसुर पक्षवालों का आशीर्वाद लेने के लिए उपस्थित हुआ । सास ने जामाता को आशीर्वाद दिया । 'आपका कार्य सिद्ध हो आपका पथ निविघ्न हो'- सभी ने रोमांचित होकर सप्रेम कहा । राउल भी वहां आगया। अन्तरंग में वह विरह से खिन्न हो रहा था, किन्तु बाह्यभाव से आनन्दित होता हुआ, निस्संकोच वह रत्नपाल के समकक्ष बैठ गया । सास ने कहा- 'जामात ! राउल हमारी पुत्री का अनन्य सहचर है। रत्नवती की भांति इसकी सुरक्षा आपको करनी है, ज्यादा क्या कहें । यह हमें बहुत प्रिय है'- यह कहती हुई रानी रोने लगी।
‘आप तनिक भी चिन्ता न करें ! यह मेरी सही प्रतिज्ञा है कि मैं इसको सभी अनुकूलताएँ दूंगा। यह अब आपका ही क्या हमारा भी है'- ऐसा कहते हुए रत्नपाल ने मित्र की तरह राउल का सहजभाव से आलिंगन किया। हाथी पर आरूढ़ हुए । नगर के बीचों-बीच होती हुई, बहुत आडम्बर के साथ उनकी प्रवास-यात्रा निकली। समुद्र तट तक राजा आदि सभी राजवर्गीय लोग उन्हें पहुँचाने आए। राजा ने अतूल संपत्ति दी। उसे नाव पर रखा गया । राउल ने भी रूप परिवर्तन करने वाली दो जडिया तथा अन्य
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