Book Title: Rayanwal Kaha
Author(s): Chandanmuni, Gulabchandmuni, Dulahrajmuni,
Publisher: Bhagwatprasad Ranchoddas

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Page 340
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६६ रयणवाल कहीं भोजन की क्या चिन्ता है ? जहां वे जाते हैं वहां अनेक दाता भिक्षा लिए उनकी प्रतीक्षा में खड़े रहते हैं। मां, मैं कुछ समय पूर्व ही पुरिमतालपुर से प्रस्थान कर अनेक गांव, नगर, पुर और पत्तनों में घूमता हुआ यहां आया | सुन्दर स्थान देखकर मैं तुम्हारी झोंपड़ी की वेदिका पर विश्राम करने बैठा हूँ । प्रभु के गुणगान से मुझे आध्यात्मिक विश्रान्ति प्राप्त हुई है । तेरे भक्ति भरे निमंत्रण से बहुत संतुष्ट हुआ हूँ- राउल ने निरपेक्ष भाव से कहा । 2 पुरिमताल का नाम सुनकर भानुमती का हृदय किसी अचिन्त्य आशा की रेखा से स्पृष्ट हुआ । उसने तत्क्षण पूछा - 'क्या आप पुरिमताल से आए हैं ? राउल ने कहा- 'हां वहीं से ।' भानुमती ने उत्सुकता से पूछा- 'क्या आप वहां के विशिष्ट व्यक्तियों को जानते हैं ?' . राउल - 'क्यों नहीं, वहां मैं बहुत काल रह चुका हूँ अतः वहाँ के प्रमुख व्यक्तियों से परिचित हूँ ।' भानुमती - 'तब तो आप मन्मन सेठ को अवश्य जानते होंगे ?" राउल -- 'हां, वह नगरप्रसिद्ध धनाढ्य कृपण है । भानुमती का हृदय - कमल हर्ष से विकसित हो गया । उसने पूछा- क्या आप उसके पुत्र - स्थानीय रत्नपाल को जानते हैं ? नई भाव-भंगिमा दिखाते हुए राउल ने कहा'ओह ! आप उस रत्न को कैसे जानती हैं ? वही मेरा परम प्रिय अनन्य मित्र है। मां ! मैं उसके साथ छह महीने तक रहा हूँ ।' -- अत्यन्त उत्सुकता से भानुमती ने पूछा- क्या यह सही है ? आप उसे जानते हैं ? इस प्रकार कहती हुई वह उसके पास आकर बैठ गई । राउल ने कहा- 'हमारे जैसे योगियों के लिए कौनसा रहस्य अज्ञात रहता है ? उसका सारा घटित घटनाचक्र मुझे ज्ञात है । वह मन्मन का पुत्र नहीं है, किन्तु वह सेठ जिनदत्त का कुलदीप और भानुमती का अंगज है । दुर्भाग्य से पीड़ित उसके माता-पिता सतावीस दिन का होने पर उसे मन्मन के घर धरोहर के रूप में रख कर किसी अज्ञात दिशा की ओर चले गए हैं ।' चिरकाल के बाद पुत्र के वृत्तान्त को सुनकर बहुत उत्सुकता से भानुमती ने पूछा- राउल, उसके आगे क्या हुआ ? For Private And Personal Use Only

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