Book Title: Rayanwal Kaha
Author(s): Chandanmuni, Gulabchandmuni, Dulahrajmuni,
Publisher: Bhagwatprasad Ranchoddas

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Page 338
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६४ रयणवाल कहा के जाता तब जिनदत्त के रहने जाने-आने के सम्बन्ध में पूछताछ करता । कुछ भी समाचार न मिलने पर अकस्मात् वह वहां से चल पड़ता । नागरिक वहां रहने का बहुत अनुरोध करते परन्तु 'बहुत रह चुका बहुत रह चुका' - ऐसा कहकर वह वहां से प्रस्थान कर देता। इस प्रकार बहुत वह लम्बे मार्ग को तय कर गया । उसने अपने मार्ग में आए हुए अनेक नगर और वन देखे । अनेक मठ, आश्रम, और सीमावर्ती गांवों में गवेषणा की। परन्तु जिनदत्त का नाम भी कहीं नहीं सुना । कोई समाचार नहीं मिले, संकेत भी नहीं मिला । तो भी राउल अखिन्नभाव से दक्षिण दिशा की ओर आगे बढ़ा जा रहा था । उसकी दृष्टि लक्ष्य पर लगी हुई थी । जो व्यक्ति असफलता को सफलता का उपादान कारण मानते हैं उन उद्यमी व्यक्तियों के लिए अप्राप्य, अशक्य और दूर क्या है ? जहाँ चरणों पर चरण आगे बढ़े जाते हैं, क्या उनके लिए मंजिल दूर है ? अनेक दिनों के बाद राउल जहाँ जिनदत्त रहता था उस बसन्तपुर नगर में आया। उस नगर कई लोग रास्ते में उसके साथ थे। उन्होंने उसे बताया कि जिनदत्त नाम का एक वृद्ध कठियारा अपनी पत्नी के साथ यहाँ गांव के बाहिर एक झोंपड़ी में रहता है । अपने ससुर का चिर चिन्तित और कर्णप्रिय नाम सुनकर हर्षातिरेक से राउल रोमांचित हो उठा । मनोरथ रूपी बादलों से सिंचित उसकी आशा वल्ली विकसित हो गई । उसने सोचा- वह मेरा ससुर सौम्य जिनदत्त और भद्र स्वभाव वाली मेरी सास भानुमती ! धन्य हूँ मैं कि आज मुझे उनके चिर दुर्लभ दर्शन प्राप्त होंगे। मैं उनको प्रिय पुत्र के अलब्धपूर्वं सुख समाचार सुनाकर उनके मन को सन्तुष्ट करूँगा । ओह ! वह आनन्दमय समय कैसा होगा ?' ऐसा सोचता हुआ राउल नगर के समीप आया । उसने झोंपड़ी देखी। जिनदत्त काठ का भार लाने वन में गया हुआ था । भानुमती झोंपड़ी में कार्यरत थी । तत्काल वह राउल, हाथ में वीणा लिए, हँसता हुआ वहां आ पहुँचा । झोंपड़ी के सामने उसने समतल, गोबर से लिपी पवित्र वेदिका देखी। चारों ओर का वातावरण प्रसन्न था । वह राउल उस वेदिका पर जा बैठा और अनजान की भांति आंखें मूदकर वीणा बजाने लगा । कानों के लिए अमृत तुल्य वीणा के मधुर स्वरों को सुनकर भानुमती ने सोचा 'यह कौन गा रहा है ? गर्दन को कुछ ऊँची कर उसने बाहर झांका उसने वीणा के साथ भक्ति रस में लीन एक बालयोगी को देखा । भानुमती ने सोचा- 'अहो ! आज हमारा दिन धन्य है कि बिना बुलाए, अचिन्तित रूप से इस बाल मुनि ने अज्ञात दर्शन देने के लिए यहां पदार्पण किया है । निश्चित ही आज कुछ महान शुभ कार्य होगा | 1 For Private And Personal Use Only

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