Book Title: Rayanwal Kaha
Author(s): Chandanmuni, Gulabchandmuni, Dulahrajmuni,
Publisher: Bhagwatprasad Ranchoddas

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Page 337
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir छैठा उच्छ्वास उसने भीतर ही भीतर रोते हुए राउल का गाढ़ आलिंगन किया। और विरह व्यथित नेत्रों से उसे देखता हुआ लिखित चित्र की भांति वहां स्थिर हो गया। उसने राउल को त्वरित गति से जाते हुए देखा और क्षण भर के बाद राउल एक वृक्ष की ओट में अन्तर्धान हो गया। रत्नपाल ने सोचा-'जिसकी मैंने स्वप्न में भी कल्पना नहीं की थी, वह कैसे घटित हआ ? ओह ! बालक होते हुए भी इसका सौजन्य कितना उत्तम है ? इसकी कैसी अद्भुत निर्भयता है ? इसकी बुद्धि की स्फुरणा और परोपकारनिष्ठा कैसी है । ओह ! इसका उत्साह और महात्म्य अनन्य है । इसका स्वभाव मधुर है और सदा मुस्कराता रहता है । ओह ! यह किसकी संतान है ? मानता हूँ कि यह बालकमुनि महान कुलीन है। मुझे धिक्कार है, मुझे धिक्कार है ! इस प्रकार के सुखोचित और सुकुमार शरीर वाला यह मेरे लिए गांव-गांव में भटकेगा, जो कुछ मिलेगा उसे खाएगा, जहां कहीं स्थान मिलने पर विश्राम करेगा, उसी काम में वह तन्मय होकर अनेक कष्टों को सहन करेगा । अज्ञानी व्यक्तियों द्वारा तिरस्कृत होने पर भी समभाव से भावित होगा।' इस प्रकार अनेक विकल्प करता हुआ, चिता करता हुआ, संमूढ हृदय से रत्नपाल घर आया । प्रत्येक कार्य में तथा भोजन के सयय में राउल का प्रतिपल स्मरण करता हुआ रत्नपाल एक-एक दिन को अंगुली के पैरवों पर गिनता हुआ ज्यों-त्यों समय बिताने लगा। इधर राउल तेज गति से मार्ग चला जा रहा था। बीच में जो भी गांव, नगर, खेट आदि आते, वह वहां सूक्ष्मरूप से खोज करता, लोगों से पूछता, तर्क करता और रत्नपाल के माता-पिता के नाम बताता, उनका संकेत देता । कुछ भी संकेत न मिलने पर आगे बढ़ जाता । आलस्य से वह कहीं भी समय को व्यर्थ नहीं गवांता था, न विश्राम करता और न निश्चिन्तता से सोता ही था। वह अपरिचित गांवों और नगरों में एकान्त में बैठकर वीणा बजाता हुआ कर्ण के लिए अमृत तुल्य और मधुर वैराग्यमय गीतों से जनता को आकृष्ट करता था। उस बालयोगी की अद्भुत रूप संपदा को देखकर जनता सम्मोहित हो जाती और अनेक वस्तुओं का दान कर उसे सम्मानित करती, उसका सत्कार करती और घर पर आने के लिए निमंत्रित करती। किन्तु राउल के मन में कोई पिपासा नहीं थी। वह कुछ भी स्वीकार नहीं करता । वह भिक्षाचर्या से आटा दाल आदि द्रव्य लाता और अपने हाथों से रसोई बनाकर एक बार भोजन करता था। फिर जब लोगों से परिचय हो For Private And Personal Use Only

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