Book Title: Rayanwal Kaha
Author(s): Chandanmuni, Gulabchandmuni, Dulahrajmuni,
Publisher: Bhagwatprasad Ranchoddas

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Page 330
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रयणवाल कहा आवश्यक वस्तुओं से भरी एक पेटी साथ में ली। राजा आदि को रत्नपाल ने प्रणाम किया। वह पंच नमस्कारमंत्र का स्मरण करता हुआ, राउल के साथ नौका में बैठ गया। सभी ने शुभ मंगल शब्द कहे और शुभ मुहुर्त में नौका वहां से चल पड़ी। अनुकूल हवा से प्रेरित होकर नौका त्वरित गति से चली और अदृश्य हो गई राजा आदि सभी परिजन अपनी पुत्री के विरह से उद्विग्न होते हुए भी इच्छित कार्य के सम्पादन से प्रसन्नता का अनुभव करते हुए अपने-अपने स्थान पर चले गए। इधर नौका में बैठा हुआ राउल पैतृकपक्ष के विरह से क्षुब्ध हो गया और वह अतुल आकुलता का अनुभव करता हुआ भक्तिगान के मिष से आँसू बहाने लगा । ज्यों-त्यों अपने भावों का गोपन करते हुए उसने अनेक सूक्ति, पद्य और गाथाओं के द्वारा विरह रस की गंभीरता को दिखाते हुए सबके मन को गद्-गद् कर दिया। For Private And Personal Use Only

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