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रयणवाल कहा
स्थिति अच्छी तरह से जान ली । ' आगे क्या करना चाहिए वह हर समय यह सोचने लगा । परन्तु रत्नपाल ने यह कभी आशंका नहीं कि राउल रत्नवती का ही रूपान्तर है। उसने निःशंक रूप से यह जाना था कि यह बालयोगी है । सभी सुख प्रस्तुत होने पर भी रत्नपाल माता-पिता के विरह से दुर्बल होता हुआ क्षणभर के लिए भी आनन्द नहीं पाता था । वह सोचता था - उन्हें कैसे खोजू ? वे अपने पुत्र के विरह के प्रताड़ित और उदासीन होते हुए कहां अपना जीवन बिता रहे हैं ? मैं अकेला प्रवास में कैसे जाऊँ ? मेरे बिना अकेला राउल इस अपरिचित प्रदेश में कैसे रहेगा ?'
इतने में ही अचानक अष्टांगनिमित्त को जानने वाला एक ज्योतिषी वहां आया । रत्नपाल ने सविनय उससे पूछा - 'विद्ववर्य ! मैं अपने पिता का वृत्तान्त कैसे जान सकता हूँ ? वे किस दिशा में रहते हैं ? – यह मुझे कैसे मालूम हो ? कृपाकर आप अपने ज्ञानबल से दिशा की सूचना दें जिससे कि मैं उनकी खोज करने में सफल हो सकूँ । रत्नपाल को अत्यन्त आकुल देखकर ज्योतिषी ने शीघ्र ही गणित किया और कहा - 'निस्सन्देह तुम्हारे मातापिता दक्षिण दिशा में हैं और वे सकुशल हैं। छह महीने के भीतर उनके दर्शन सुलभ हो सकेंगे । कुमार ! विपत्ति के दिन बीत गए । अब सारा सुख ही सुख है । यह मेरी निश्चित वाणी है ।' रत्नपाल ने उसे दान देकर संतुष्ट किया और वह अपने घर चला गया ।
अवसर पाकर रत्नपाल ने राउल से सखेद कहा - योगीप्रवर ! मैं तुम्हें छोड़कर अकेला कहीं जाना नहीं चाहता, किन्तु अभी समय की मांग ऐसी है कि मुझे माता-पिता की खोज के लिए अवश्य जाना चाहिए। तुम यहाँ रह कर घर की देखभाल करते रहो । शीघ्र ही मैं माता-पिता को खोजकर उन्हें यहां ले आऊँगा और तत्पश्चात् रत्नवती को लाने के लिए तेरे साथ ससुरालय जाऊँगा । अभी तो समय की बाट देखनी ही चाहिए ।'
कुछ मुस्कराकर राउल ने कहा- 'इसमें कोई खेद नहीं है। माता-पिता से बढ़कर और बड़ा क्या है ? उनकी सेवा देव-सेवा है। उनका दर्शन देव दर्शन के समान है । उनकी आज्ञा देव आज्ञा के बराबर है । उस कृमितुल्य कुलांगार पुत्र से क्या लाभ, जो अपने माता-पिता के लिए सुख का हेतु नहीं बनता । परंतु यह कार्य तुम्हारे जैसे गृहस्थों का नहीं है, बल्कि मेरे जैसे योगियों का है । तुम्हारे जैसों के लिए हेमन्तऋतु अनुकूल नहीं है । इस ऋतु में जगत् को कंपित करने वाली उत्तरदिशा से शीतल वायु प्रवाहित होती है । ऐसे समय में कौन
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