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पांचवां उच्छ्वास
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दिलाने के लिए हम तुम्हारे साथ एक महान् दक्ष बालयोगी को भेजेंगे । वह रत्नवती का बालसाथी है । वह तुम्हें समय-समय पर ससुराल की स्मृति और पुन: आने की प्रेरणा देता रहेगा। इससे हमारा मन भी पूरा भरा हुआ और आश्वस्त रहेगा।' ___ स्वीकारात्मक स्वर से बोलते हुए रत्नपाल ने कहा-'हां यह बहुत अच्छा है । आपने अच्छी योजना बनाई है। इसमें किसी को कोई बाधा नहीं हो सकती।' ___ इधर वह योगी वहां आया । उसकी मुखच्छवि अद्भुत और विमोहक थी । उसके इगित और आकार (शारीरिक चेष्टाओं और हावभावों) से उसका चातुर्य साक्षात् परिलक्षित हो रहा था । बालक होते हुए भी उसके नेत्र-कमल प्रशान्त थे और उसके होंठ कुछ हिल रहे थे । मानों कि वह कुछ जप रहा हो उसके गले में रुद्राक्ष की माला थी। सबने उसे ससम्मान वन्दन किया और उसे उचित आसन पर बिठाया । उसे देखकर रत्नपाल रोमाञ्चित हो उठा और उसका मुंह विस्मय से प्रफुल्लित हो गया । अरे ! इस कोमल बाल-काल में भी इसे वैराग्य कैसे हो गया ? धन्य है इसके माता-पिता, कुल में ऐसे वंशोद्धारक और भविष्यद् योगी पुत्र का जन्म हुआ।' ___ रत्नपाल ने पूछा-'भदन्त ! क्रीड़ा योग्य और जगत् के व्यवहार से अजान इस बाल्यकाल में आपकी विरक्ति का कारण क्या है ? यह आश्चर्य होता है कि-आपने बन्धुजनों का स्नेह कैसे तोड़ दिया ? अहा ! यह लोकोतर कार्य है ! __ यदि मनुष्य जागरूक होकर देखता है तो इस संसार में पग-पग पर वैराग्य है । क्या संसारी प्राणी यह नहीं जानता कि ---'यहां की कौनसी वस्तु स्थिर है ?' जो व्यक्ति ऐसा कहते हैं कि-प्रभात में या सांयकाल धर्म का आचरण करेंगे'- उनका कथन मूर्खतापूर्ण है । क्या आगम का उद्घोष नहीं सुना है ? ___-जिस व्यक्ति की मृत्यु के साथ मित्रता है, जो यह मानता है कि मृत्यु आने पर मैं पलायन कर जाऊँगा और जो यह जानता है कि मैं नहीं मरूंगा'--वही व्यक्ति धर्म को भविष्य के लिए छोड़ सकता है ---- इस प्रकार कहता हुआ योगी आँखें बन्दकर ध्यान में लीन हो गया । शान्त रस को बहाने वाली उसकी मुख मुद्रा को देखकर रत्नपाल प्रभावित हुआ।
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