Book Title: Rayanwal Kaha
Author(s): Chandanmuni, Gulabchandmuni, Dulahrajmuni,
Publisher: Bhagwatprasad Ranchoddas

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Page 312
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रयणवाल कहा को कभी नहीं पा सकते हैं-इस तथ्य को बताते हुए समुद्र चिकने शंख, शुक्ति और कौड़िओं के ढेरों से युक्त तटों से शोभित होता है । इस प्रकार काव्य कल्पना में निपुण भानुमती का पुत्र रत्नपाल समुद्र में सकुशल यात्रा कर रहा था । अल्पज्ञ मनुष्य जो-जो सोचता है, वह सारा वैसे ही हो, यह कोई निश्चित नियम नहीं है । अरे मनुष्य जो सोचता है यदि वह सारा साकार हो जाए तो जगत् का सारा कार्य एक ही क्षण में अस्त-व्यस्त हो जाए और अदृष्ट की व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो जाए । यहाँ का रहस्य विचित्र है । अलक्षित लक्ष्य को लक्षित करने वाले कुछ एक महामेधावी जन ही इसे जान सकते हैं। । रात्रि में अचानक ही बिजली चमकने लगी। बादल उठे। बादलों की गर्जना सुनाई दी । भारी वृष्टि होने लगी। घना अंधकार छा गया । वेग से झंझावात चलने लगा। पूर्ण नियन्त्रण करने पर भी स्वच्छंद व्यक्ति की तरह, भाग्य से प्रेरित दिग्भ्रान्त नौका इधर-उधर दौड़ने लगी। उसमें बैठे हुए सभी व्यक्ति शंकित हो गए, उनका हृदय कांप उठा, वे किंकर्तव्यविमूढ़ होकर अपने-अपने इष्टदेव की स्मृति करने लगे। नाविकों ने नौका रोकने के लिए बहुत प्रयत्न किया, परन्तु प्रतिकूल पवन से प्रेरित, भावी के वशवर्ती, वह नौका एक अलक्षित द्वीप पर जा लगी। प्रभात हुआ । वृष्टि शान्त हुई । तट के पास नौका को बांध दिया, सूर्योदय हुआ। 'यह कौन सा द्वीप है ?'सबके मन में प्रबल जिज्ञासा जगी। रत्नपाल नौका से नीचे उतरा और तट पर इधर-उधर घूमने लगा। इतने में ही उसने एक आदमी को अपनी ओर आते देखा । बुलाने पर वह समीप आया। रत्नपाल ने पूछा-'यह प्रदेश कौनसा है ? उसने तत्काल कहा- 'कुमार ! यह कालकूट नाम का द्वीप है। यहाँ कृष्णायन नाम का राजा रहता है। वह अनेक माया करने में कुशल, प्रतिदिन दंभ का आचरण करने वाला और सभी धूर्त व्यक्तियों का शिरोमणि है । यहाँ के सभी नागरिक एक-एक से अधिक धूर्त, मीठे बोलने वाले सदा यथार्थ व्यवहार का दिखावा करते हैं। भद्र ! कोई सामुद्रिक व्यापारी भाग्यवश यहां आ जाता है तो, जिस प्रकार गीध मृत कलेवर को खण्ड खण्डित कर देते हैं, उसी प्रकार वे भी उसको ठग लेते हैं, और उसे महादारिद्रय अवस्था को प्राप्त करा देते हैं। मेरे साथ भी ऐसी ही माया प्रधान घटना घटित हुई है, वह घटना इस प्रकार है-एक बार मैं विक्रय वस्तुओं से नौका को भर कर समुद्र को पार कर रहा था। प्रतिकूल पवन से प्रेरित For Private And Personal Use Only

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