Book Title: Rayanwal Kaha
Author(s): Chandanmuni, Gulabchandmuni, Dulahrajmuni,
Publisher: Bhagwatprasad Ranchoddas

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Page 314
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४० रयणवाल कहा यह काम मूर्खता का द्योतक भी है । इस प्रणाली से तुम्हारी मूल पूजी सुरक्षित कैसे रह सकती है ? ____ उसने पूर्ण श्रद्धापूर्वक कहा--'तुमने ठीक प्रश्न किया है । उसका उत्तर देने के लिए मेरा मन लज्जा का अनुभव कर रहा है । परन्तु क्या कहूँ, मेरा दानशोल स्वभाव ही ऐसा है, कि मैं उसे व्यापार में भी नहीं भूल सकता । कार्य कैसे चलता है'--इसको मैं अभिव्यक्त नहीं कर सकता। सर्वक्षतिपुरक, सर्वशक्तिमान् और सबके योग-क्षेम को करने वाला क्या कोई ईश्वर नहीं है ? इधर घी लेकर वह कन्या अपने स्थान पर गई। घी को देखकर उसके पिता ने आश्चर्य से पूछा-'पुत्री ! मुल्य की अपेक्षा से घी दुगुना दीख रहा है।' जिसके यहाँ से तू घो लाई है उस जैसा धूर्त शिरोमणि इस नगर में दूसरा कोई नहीं है। उसने ऐसा क्यों किया? इसमें कोई रहस्य है । क्या वहाँ कोई प्रवासी उपस्थित था ? पुत्री ने कहा-' हां, एक अपरिचित मनुष्य वहां कोई वस्तु रखने के लिए बार-बार उससे अनुरोध कर रहा था ।' पिता ने कहा- 'सत्य है, उसको ठगने के लिए उस धूर्त ने यह माया रची है । कन्ये ! उसे घी पुनः लौटाने के लिए शीघ्र जा और जैसा मैं कहूँ उसे जोर से कह आ।' घी लेकर कन्या शीघ्र ही उसकी दुकान पर आ पहुंची और म्लान मुख से बोली-'दुकानदार ! तुमने यह अनुचित क्यों किया ? इसे देखकर मेरे पिता बहुत कुपित हुए। और मुझे मूर्ख कहकर तिरस्कृत किया, निर्दयता से डांटा । मुझे शिक्षा देते हुए उन्होंने कहा- 'भद्रे । हम निर्धन हैं; इसकी चिन्ता नहीं करनी चाहिए। न्याय-युक्त श्रमजल से सिक्त भोजन से हम संतुष्ट हैं और सुख से अपना जीवन बिता रहे हैं । न्याय से उपाजित एक कौड़ी भी करोड़ के बराबर है और अन्याय से संचित कुटिल करोड़ भी हमारे लिए कार्य साधक नहीं है । इसलिए तू इस अहितकारी अधिक घी को लौटा आ'-इस प्रकार कहती हुई उस कन्या ने घृत-पात्र को उसके समक्ष रखा और जो अतिरिक्त घी था उसे लौटाकर तत्काल वहां से मुड़ गई । तब मैंने सौचा-'हन्त ! बालिका का पिता निश्चित ही महान् सत्यवादी होना चाहिए, जिसने आगत अतिरिक्त घृत को नहीं रखा । ओह ! कैसी विशुद्ध नीति, कितना विमल चिन्तन और धार्मिक निष्ठा है । यदि मैं उसके पास अपना धन रखू तो भविष्य में कोई भी भय सम्भव नहीं है' ऐसा निश्चय कर मैं तत्क्षण धन लेकर वहाँ से कन्या के पीछे-पीछे चला । ऐसा देखकर उस For Private And Personal Use Only

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