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पांचवां उच्छ्वास किया और अपनी वस्तुओं को बहुत लाभ में बेचने लगा। उसे अकल्पित लाभ हुआ। छह महीने बीते। उसने वहां से उचित भावों में सुलभता से प्राप्त नई वस्तुएँ खरीदीं। और शीघ्र ही अपने देश की ओर जाने की चेष्टा की, किन्तु विधि क्या क्या नई घटनाएं घटित करती हैं, यह भव्य लोग सुनें।
उस राजा के एक लड़की थी उसका नाम रत्नवती था। वह बड़ी समयशा और विचार-दक्षा थी। वह भनेक प्रकार के शिल्प और कलाओं की ज्ञाता, सप्तस्वरों से साधने योग्य गान्धर्व विद्या में निपुण, अनेक भाषा विज्ञान में जिसकी काव्य-कला विकसित थी। साक्षात् सरस्वती, सुन्दर वर्ण
और रूप से युक्त, अनुपमेय आकृति और अद्भुत आकर्षणों वाली, सर्वाङ्ग सुन्दरी, मधुर आलाप करने में दक्ष एवं सभी गुणों से युक्त थी । जब वह यौवन को प्राप्त हुई तब वह माता पिता के चिन्ता का कारण बन गई। राजा ने उसके लिए बहुत बारीकी से अनेक कुमारों को देखा किन्तु उसे कुल, रूप, शील, विद्या और यथेष्ट गुणों की प्राप्ति उनमें नहीं मिली। जिस किसी अयोग्य व्यक्ति को राजा अपनी पुत्री देना नहीं चाहता था। जब से राजा ने सर्वगुण-संपन्न सरूप, विनयशील और विवेकी रत्नपाल को देखा तब उसके हृदय में रत्नपाल ने राजकुमारी के वर के रूप में स्थान प्राप्त कर लिया था। उसने सोचा-प्रेम के अमृत से स्नात मेरी पुत्री के योग्य यह रत्नपाल है। मैंने रूप और गुण में सुन्दर ऐसा दूसरा व्यक्ति नहीं देखा है । परन्तु यह प्रवासी है । क्या यह इसके साथ विवाह करना स्वीकार कर लेगा ? इस चिन्ता से आकुल तूल की शय्या पर सोते हुए भी राजा को रात भर नींद नहीं आती थी। राजा ने अपनी भावना मंत्री के समक्ष रखी। उसने भी 'आपका चिंतन उचित है'-यह कहकर राजा का अनुमोदन किया। उसने आगे कहा-हमें प्रयत्न करना चाहिए, संभव है सफलता मिल जाए। एक बार राजा ने प्रसन्न वातावरण में कुमार को एकान्त में बुला भेजा । कुशल पृच्छा के पश्चात् राजा ने बहुत दक्षता से अपनी मनोभावना उसके समक्ष रखी और यह आशा व्यक्त की कि हमारी भावना निष्फल नहीं जाएगी। राजा ने कहा-भीषण रोग से मुक्ति दिलाने वाले कुमार के प्रति हम क्या प्रत्युपकार कर सकते हैं ?
स्वप्न में भी अकल्पित, अदृष्ट और अविमृष्ट राजा की प्रार्थना को सुनकर कुमार अत्यन्त विस्मित और चिन्तित हो गया। उसका हृदय-समुद्र
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